Assess the market control policy of Alauddin Khilji

Assess the market control policy of Alauddin khilji .

अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण निति का मुल्यांकन करे

Assess the market control policy of Alauddin khilji .

 

Answer –

Assess the market control policy of Alauddin khilji

चौदहवीं शताब्‍दी में दिल्‍ली सल्‍तनत का एक ऐसा शासक हुआ जिसने अपनी दृढ़ इच्‍छा-शक्ति एवं कठोर अनुशासन से यह साबित कर दिया कि, शासक चाहे तो किसी भी योजना या नीति का कार्यान्‍वयन असंभव नहीं है, चाहे वह समाज के प्रभावशाली वर्ग के हितों के विरूद्ध क्‍यों न हो? वह शासक था- अलाउद्दीन खिलजी, जिसने मध्‍यकालीन भारत में आम लोगों के हित के लिए उपयोगी वस्‍तुओं को न केवल सस्‍ती दरों पर मुहैया किया और न केवल बाजार को नियंत्रित किया बल्कि वस्‍तुओं के मूल्यों को भी नियत किया एवं उस मूल्‍य पर व्‍यापारियों द्वारा वस्‍तुओं का विक्रय भी सुनिश्चित किया

 

अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण निति निम्न्लिखित हैं 

 

(i)अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति 

अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का ही नहीं, बल्कि मध्यकालीन भारत के योग्य शासकों में से एक था। अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1296 ई. में अपने बूढ़े चाचा जलालुद्दीन खिलजी को धोखे से मरवाकर स्‍वयं को दिल्‍ली का शासक घोषित किया। उसका शासनकाल काफी महत्‍वपूर्ण था। मध्‍यकालीन इतिहास में उसके कुछ सुधार पूर्णतः नवीन प्रयोग कहे जा सकते हैं। वह दिल्‍ली सल्‍तनत का महान, प्रतिभा सम्पन्न एवं दूरदर्शी शासक था जिसने विभिन्‍न क्षेत्रों में अपनी दूरदर्शिता और मौलिकता प्रदर्शित की। हालांकि अलाउद्दीन खिलजी शिक्षित नहीं था फिर भी उसमें व्‍यावहारिक ज्ञान की कमी नहीं थी और वह अपने राज्‍य की आवश्‍यकताओं को भली-भांति समझता था। यह सही है कि उसने कुछ ऐसे कदम उठाये थे जो अमीरों एवं उलेमाओं जैसे प्रभावशाली वर्ग के हितों के विपरीत थे। खिलजी ने अनेक आर्थिक सुधार भी किये, जो चौदहवीं शताब्‍दी के प्रारंभिक दशक में एक राज्‍य नियंत्रित अर्थव्‍यवस्‍था को दर्शाता है। अलाउद्दीन के आर्थिक सुधारों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान उसकी मूल्य निर्धारण योजना अथवा बाजार नियंत्रण की नीति को दिया जाता है। इसका उल्लेख बरनी ने अपनी पुस्तक तारीख़-ए-फिरोजशाही में किया है। उस ज़माने के लिए यह प्रयोग नया था। इस योजना से अलाउद्दीन खिलजी को जो सफलता मिली वह काफी रोचक एवं असाधारण है। वस्‍तुओं के जो नियंत्रित मूल्‍य अलाउद्दीन खिलजी ने रखे उसका अनुपालन भी दृढ़तापूर्वक हो, यह उसने व्‍यक्तिगत तौर पर सुनिश्चित किया।

 

(ii)अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक सुधार नीति 

सामायन्‍यतः यह माना जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी द्वारा इस योजना को लागू करनें का मुख्‍य उद्देश्‍य सैनिकों की आवश्‍यकताओं की पूर्ति पर आधारित था। एक बड़ी सेना को अपेक्षाकृत कम खर्च पर कायम रखना इसका उद्देश्‍य था। अलाउद्दीन का शासनकाल सतत युद्ध का काल था। युद्ध के लिए एक वृहत् एवं मजबूत सेना की आवश्‍यकता थी। अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी विस्तार नीति और मंगोल आक्रमणों ने उसके लिए विशाल सेना रखना अनिवार्य कर दिया था। विशाल सेना के रख-रखाव पर काफी खर्च आता था। सेना पर होने वाले खर्च में कमी लाने के उद्देश्य से अलाउद्दीन ने सैनिकों का वेतन निर्धारित कर दिया था। अतः यह आवश्यक था कि सैनिकों को इस सीमित वेतन में ही दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएं उपलब्ध कराई जा सकें। अतः वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करना आवश्यक हो गया। लेकिन यदि हम उस समय के परिप्रेक्ष्य में इस योजना का मूल्यांकन करें, तो यह कहना उचित नहीं है कि अलाउद्दीन ने आर्थिक सुधार केवल सेना को ही ध्‍यान में रखकर किए थे, क्‍योंकि यह नीति सैन्‍य अभियान समाप्‍त होने के बद भी चालू रखी गई। दूसरी बात यह है कि अलाउद्दीन द्वारा चौदहवीं शताब्‍दी के पहले दशक में सैनिकों को दिया जाने वाला 234 टंका प्रतिवर्ष या 19.5 टंका प्रतिमाह कोई छोटी राशि नहीं थी। खासकर जब हम इसकी तुलना बाद के शासकों अकबर 240 टंका प्रतिवर्ष से करते हैं। अलाउद्दीन अकबर से 6 टंका कम एवं शाहजहां से 34 टंका प्रतिवर्ष अधिक देता था अतः हम यह कह नहीं सकते कि सैनिकों की तनख्‍वाह कम थी। जब बाद के दिनों में लगभग इसी वेतन से अकबर एवं शाहजहां के अधीन सेना संतुष्‍ट थी, तब अलाउद्दीन के समय यह राशि अल्‍प नहीं कही जा सकती। अतः इस ध्‍येय से मूल्‍य नियंत्रण आवश्‍यक नहीं था। 

 

(iii)अलाउद्दीन खिलजी की कल्‍याणकारी नीति 

दूसरी ध्‍यान देनेवाली बात यह है कि अलाउद्दीन ने न सिर्फ अनिवार्य उपयोगी वस्‍तुओं का मूल्‍य नियंत्रण किया था, बल्कि रेशम आदि विलास वस्‍तुओं के मूल्‍य पर भी अंकुश लगाया था। फिर एक और बात यह है कि मूल्‍य नियंत्रण का लाभ सिर्फ सैनिकों के लिए ही नहीं था, बल्कि पूरी आम जनता के हित में था। हर कोई बाजार से नियत दर पर सामान खरीद सकता था। अगर यह सिर्फ सैनिक के लिए होता तो इसकी व्‍याप्ति सीमित होती। अलाउद्दीन का उद्देश्‍य तो अपनी प्रजा को इस कल्‍याणकारी उपाय द्वारा मदद करना था। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि लोक हितकारी विचार से यह योजना बनायी गयी थी।इस विषय पर एक अधिक तार्किक पक्ष यह है कि यह योजना मुद्रास्‍फीति नियंत्रण के उद्देश्‍य से लागू की गई थी। युद्ध में विजयोपरांत दिल्‍ली के नागरिकों के बीच युद्ध में जीते गए धन का प्रचुर वितरण होता था। जिसके कारण दिल्‍ली में सोने एवं चांदी के सिक्‍कों की मात्रा में तेजी से वृद्धि हो गई थी। परंतु वस्‍तुओं की आपूर्ति उस अनुपात में पर्याप्‍त न होने के कारण मूल्‍य वृद्धि होना लाजिमी था। ऐसी परिस्थिति में जब दिल्‍ली में मुद्रा का संचालन में अधिक होना, व्‍यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा था, व्‍यापारी कृत्रिम अभाव पैदा कर मूल्‍य वृद्धि करने को प्रवृत हो रहे थे। फलतः अलाउद्दीन को व्‍यापारी वर्ग के इस जोड़ तोड़ को रोकने के लिए मूल्‍य नियंत्रण योजना लागू करना आवश्‍यक हो गया था। अलाउद्दीन ने खाने, पहनने व जीवन की अन्‍य आवश्‍यक वस्‍तुओं के भाव नियत कर दिए। यहां तक कि गुलामों, नौकरों एवं दास-दासियों के भाव भी निश्चित थे। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि सस्‍ते में रोटी उपलबध करवाकर अलाउद्दीन ने सफल शासन का जंतर प्राप्त कर लिया। अगर वह वस्‍तुओं के मूल्‍यों को नीचे लाता है तो उसे प्रसिद्धि मिल जाएगी एवं वह सफलतापूर्वक शासन कर पाएगा। एक तरफ उसने जहां अमीरों की कई सुविधाओं में कटौती की, वहीं दूसरी ओर उन्‍हें विलास-वस्‍तुओं को कम कीमत पर मुहैया कराने का प्रबंध किया। अतः इस योजना का उद्देश्‍य एक व्‍यापक राजनीतिक हित साधन था

 

(iv)अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण व्यवस्था की नीति 

मूल्‍य नियंत्रण की आज्ञा केवल दिल्‍ली के लिए दी गई थी या पूरी सल्‍तनत के लिए, यह विवादास्‍पद प्रश्‍न है। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि यह योजना सिर्फ दिल्‍ली शहर तक सीमित थी। अगर यह सिर्फ दिल्‍ली तक ही सीमित रही होती तो क्‍या सेनाओं के वेतन के लिए दुहरा मापदंड रखा गया था? संभवतया नहीं, क्‍योंकि यदि यह योजना सिर्फ सेना के लिए थी तो सेना सिर्फ दिल्‍ली में ही नहीं रहती थी। और फिर अलग-अलग जगह रहनेवाली सेनाओं का वेतन अलग-अलग हो, यह व्‍यावहारिक प्रतीत नहीं होता। दूसरी बात यह है कि यदि सिर्फ दिल्‍ली में ही मूल्‍य नियंत्रण होता तो दूरदराज के व्‍यापारी दिल्‍ली में आकर कम मूल्‍य पर अपना सामान क्‍यों बेचते? वे उसे कहीं और बेच सकते थे, जहां उन्‍हें अधिक मुनाफा मिलता। ऐसा भी कहीं उल्‍लेख नहीं मिलता कि दिल्‍ली में आकर व्‍यापार करने के लिए प्रशासन की तरफ से कोई बाध्‍यता थी। तो हम तार्किक रूप से यह निष्‍कर्ष निकाल सकते हैं कि नियंत्रित बाजार सिर्फ दिल्‍ली में ही नहीं थे, बल्कि कुछ और बड़े केंद्रो में भी यह व्‍यवस्‍था थी। उन दिनों जब सरकारी मशीनरी इतनी संगठित नहीं थी, इस तरह की योजनाओं को सल्‍तनत के प्रत्‍येक शहर में लागू करना सहज नहीं था। यहां एक और ध्यान देनेवाली बात यह है कि इसका प्रमुख उद्देश्‍य मूल्‍य वृद्धि को नीचे लाना तथा मुद्रास्‍फीति पर नियंत्रण रखना था। सोने एवं चांदी के सिक्‍कों की बहुतायत के कारण सिर्फ दिल्‍ली या फिर कुछेक बड़े शहरों में मूल्‍य नियंत्रण से बाहर जा रहा था। अतः इस योजना की आवश्‍यकता दिल्‍ली एवं कुछेक बड़े शहरों में ही पड़ी होगी, बाकी जगह मूल्‍य नीचे ही रहे होंगे। अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार नियंत्रण व्यवस्था की नीति के कार्यान्‍वयन के लिए एक नये विभाग का गठन किया, जिसे ‘दिवान-ए-रियासत’ नाम दिया गया। इसका प्रधान ‘सदर-ए-रियासत’ कहा जाता था। दिल्‍ली में तीन अलग-अलग बाजारों की स्‍थापना की गई। ‘दिवान-ए-रियासत’ के अधीन प्रत्येक बाजार के लिए निरीक्षक नियुक्त किया गया। इसे ‘शहना’ कहते थे, जो योजना लागू करने के लिए उत्तररदायी था। गुप्तचर अथवा ‘बरीद’ एवं ‘मुन्हीयां’ नियुक्त किये गये ताकि बाजार की गतिविधियों एवं शहना पर निगरानी रख सके। पहला बाज़ार था गल्‍ला मंडी – खाद्यान्‍न के लिए बाजार, दूसरा था सराय-अदल (अर्थात न्‍याय का स्‍थान)- यह मुख्‍यतः वस्‍त्र बाजार था एवं तीसरा था घोड़े, दासों, पशुओं आदि का बाजार।

 

(v)अलाउद्दीन खिलजी की मूल्य नियंत्रण नीति 

हालाकि अलाउद्दीन की मूल्य नियंत्रण प्रणाली की इतिहासकारों ने इस आधार पर आलोचना की है कि यह व्यवस्था न तो जनता के हित में थी और न ही राज्य के स्थाई हित में, लेकिन हम कह सकते है कि अलाउद्दीन की मूल्य नियंत्रण नीति काफी मौलिक थी। अलाउद्दीन की यह सबसे महत्‍वपूर्ण उपलब्धि थी। जब तक वह जीवित रहा बाजार में निश्चित कीमतों में तनिक भी वृद्धि नहीं हुई। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि अलाउद्दीन अनपढ़ व्‍यक्ति था। अकबर की तरह टोडरमल या अबुल फजल जैसे काबिल सलाहकार भी उसके पास नहीं थे। अतः अलाउद्दीन ने जो भी सफलता प्राप्‍त की वह उसे अपनी सामान्‍य जानकारी के बदौलत ही मिली। इस योजना को मदद पहुंचानेवाले किसी वृहत ढांचे, तकनीकी दक्षतायुक्‍त निरीक्षण, तकनीकी सलाह और संगठित प्रशासनिक कुशलता के बिना ही, सिर्फ अपनी इच्‍छाशक्ति के बल पर उसने अल्‍पा‍वधि में ही चिरस्‍थाई प्रभाव पैदा किए। इस खास उपलब्धि ने अलाउद्दीन को भारतीय इतिहास में चिरस्‍थाई ख्‍याति प्रदान की। अलाउद्दीन की मृत्‍यु के बाद यह योजना अंततोगत्‍वा समाप्‍त हो गई। वैसे भी उसकी मृत्‍यु के बाद सैन्‍य गतिविधियां प्रायः समाप्‍त हो गई। एक वृहत सेना की आवश्‍यकता भी नहीं रह गई थी। अतः यह योजना उस दृष्टिकोण से अनावश्‍यक हो गई थी। फिर भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ऐसी योजना उस काल के हिसाब से किसी आश्‍यर्च से कम नहीं थी!

 

Answer in English  –

 

Introduction:

In the fourteenth century, Delhi Sultanate had a ruler who, with his strong will power and strict discipline, proved that it is not impossible to implement any plan or policy if the ruler wishes, even if it is against the interests of the influential section of the society. Why not to be? That ruler was – Alauddin Khilji, who not only provided useful goods at cheap rates for the benefit of the common people in medieval India and not only controlled the market but also fixed the prices of the goods and at that price the goods were sold by the traders. sales also ensured

Following are the market control policies of Alauddin Khilji

 

(i) Market control policy of Alauddin Khilji
Alauddin Khilji was not only of the Delhi Sultanate but also one of the capable rulers of medieval India. In 1296 AD, Alauddin Khilji deceived his old uncle Jalaluddin Khilji and declared himself the ruler of Delhi. His reign was very important. Some of his reforms can be called completely new experiments in medieval history. He was a great, talented and far-sighted ruler of the Delhi Sultanate who displayed his foresight and originality in various fields. Although Alauddin Khilji was not educated, he did not lack practical knowledge and he understood the needs of his state very well. It is true that he had taken some steps which were contrary to the interests of influential classes like the rich and the Ulemas. Khilji also introduced a number of economic reforms, leading to a state-controlled economy in the early decades of the fourteenth century. Among Alauddin’s economic reforms, the most important place is given to his pricing scheme or market control policy. Barani has mentioned this in his book Tarikh-e-Firozshahi. This experiment was new for that time. The success that Alauddin Khilji achieved through this plan is quite interesting and extraordinary. He personally ensured that the controlled prices of goods kept by Alauddin Khilji were strictly followed.

(ii) Economic reform policy of Alauddin Khilji
It is generally believed that the main objective of implementing this plan by Alauddin Khilji was based on meeting the needs of the soldiers. Its objective was to maintain a large army at relatively low expense. Alauddin’s reign was a period of continuous war. A large and strong army was required for the war. Alauddin Khilji’s imperialist expansion policy and Mongol invasions made it mandatory for him to maintain a huge army. A lot of money was spent on maintaining a huge army. In order to reduce the expenditure on the army, Alauddin had fixed the salaries of the soldiers. Therefore, it was necessary that items of daily needs could be provided to the soldiers within this limited salary. Therefore, it became necessary to determine the price of goods. But if we evaluate this plan in the perspective of that time, then it is not appropriate to say that Alauddin made economic reforms keeping the army only in mind, because this policy was continued even after the military campaign ended. Secondly, the amount of 234 tanka per year or 19.5 tanka per month given by Alauddin to the soldiers in the first decade of the fourteenth century was not a small amount. Especially when we compare it with the later rulers Akbar’s 240 tanka per annum. Alauddin paid 6 tankas less than Akbar and 34 tankas more than Shahjahan per year, hence we cannot say that the salaries of the soldiers were less. When in later days the army under Akbar and Shahjahan was satisfied with almost this salary, then during the time of Alauddin this amount cannot be called small. Therefore, price control was not necessary for this purpose.

(iii) Welfare policy of Alauddin Khilji
The second thing worth noting is that Alauddin not only controlled the prices of essential commodities but also controlled the prices of luxury goods like silk. Then one more thing is that the benefit of price control was not only for the soldiers, but was in the interest of the entire general public. Everyone could buy goods from the market at a fixed rate. If it was only for soldiers then its coverage would be limited. Alauddin’s aim was to help his subjects through this welfare measure. On this basis, we can say that this plan was made with public welfare in mind. A more logical side on this subject is that this plan was implemented for the purpose of controlling inflation. After the victory in the war, there was abundant distribution of the money won in the war among the citizens of Delhi. Due to which the quantity of gold and silver coins in Delhi increased rapidly. But since the supply of goods was not sufficient in that proportion, price increase was inevitable. In such a situation when excess currency in circulation in Delhi was promoting business activities, traders were tending to increase prices by creating artificial scarcity. As a result, it became necessary for Alauddin to implement a price control scheme to stop this manipulation of the business class. Alauddin fixed the prices of food, clothing and other essential items of life. Even the prices of slaves, servants and maids were fixed. Some people even said that by making bread available at cheap rates, Alauddin achieved success in ruling the country. If he brings down the prices of goods he will gain fame and be able to rule successfully. On one hand, he cut down many facilities for the rich, while on the other hand, he made arrangements to provide them luxuries at low prices. Therefore, the purpose of this plan was a broader political interest instrument

(iv) Alauddin Khilji’s policy of market control system
Whether the price control order was given only for Delhi or for the entire Sultanate is a controversial question. Some people believe that this scheme was limited only to Delhi city. If it had been limited to Delhi only, would double standards have been set for the salaries of the armed forces? Probably not, because if this plan was only for the army then the army would not have stayed only in Delhi. And then it does not seem practical that the salaries of the armies living in different places should be different. The second thing is that if there was price control only in Delhi, then why would the traders from far away places come to Delhi and sell their goods at lower prices? They could have sold it somewhere else, where they would have got more profits. There is no mention anywhere that there was any compulsion from the administration to come to Delhi and do business. So we can logically conclude that controlled markets were not only in Delhi, but this system was also present in some other big centres. In those days when the government machinery was not so organised, it was not easy to implement such schemes in every city of the Sultanate. Another thing to be noted here is that its main objective was to bring down price rise and control inflation. Due to abundance of gold and silver coins, the prices were going out of control only in Delhi or some big cities. Therefore, this scheme would be needed only in Delhi and some big cities, prices would have remained low in other places. Alauddin Khilji formed a new department to implement the policy of market control system, which was named ‘Diwan-e-Riyasat’. Its head was called ‘Sadar-e-Riyasat’. Three separate markets were established in Delhi. Inspector was appointed for every market under ‘Diwan-e-Riyasat’. This was called ‘Shahna’, who was responsible for implementing the plan. Spies or ‘Barid’ and ‘Munhiyan’ were appointed to monitor the activities and activities of the market. The first market was Galla Mandi – a market for food grains, the second was Sarai-Adal (i.e. a place of justice) – it was mainly a cloth market and the third was a market for horses, slaves, animals etc.

(v) Price control policy of Alauddin Khilji
Although Alauddin’s price control system has been criticized by historians on the grounds that this system was neither in the interest of the public nor in the permanent interest of the state, but we can say that Alauddin’s price control policy was quite original. This was the most important achievement of Alauddin. As long as he lived, the fixed prices in the market did not increase even slightly. As said earlier, Alauddin was an illiterate person. Like Akbar, he did not have capable advisors like Todarmal or Abul Fazal. Therefore, whatever success Alauddin achieved was due to his general knowledge. Without any overarching structure to support this plan, competent technical supervision, technical advice and organized administrative efficiency, it created lasting impacts in the short term by sheer force of will. This special achievement gave Alauddin lasting fame in Indian history. This plan finally ended after the death of Alauddin. Anyway, after his death military activities almost ended. There was no longer any need for a large army. Therefore, this scheme had become unnecessary from that point of view. Still, it would not be an exaggeration to say that such a plan was no less than a surprise for those times!

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